नांदेड, महाराष्ट्र। दिल्ली सरकार की हिन्दी अकादमी एवं अहिन्दी भाषी हिन्दी लेखक संघ के संयुक्त तत्त्वावधान में महान साहित्यकार, चिंतक, समाज सुधारक गुरु गोविंद सिंह महाराज की कर्मभूमि नांदेड में आयोजित त्रिदिवसीय अखिल भारतीय लेखक सम्मेलन में देशभर से पधारे विद्वानों ने हिन्दी को एकता के सूत्र में बांधने वाली शक्ति बताते हुए इसके अधिकाधिक प्रयोग पर बल दिया गया। स्वामी रामानंद तीर्थ विश्वविद्यालय के सायन्स कॉलेज के भव्य सभागार में विभिन्न सत्रों में चर्चा, कवि सम्मेलन, किशोर कृत ‘‘खरी-खरी’’ कार्टून पोस्टर प्रदर्शनी, तथा सम्मान समारोह के दौरान बहुत बड़ी संख्या में स्थानीय लेखक, पत्रकार, अध्यापक, शोध छात्र तथा हिन्दीप्रेमी लगातार उपस्थित रहे।
प्रथम दिवस के उद्घाटन सत्र में गुरुद्वारा हजूर साहिब सचखंड के मुख्यग्रन्थी प्रतापसिंह की उपस्थिति में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के सदस्य एवं पूर्व सांसद लेखक स. हरविंदर सिंह हंसपाल, कालेज अध्यक्ष डा. व्यंकटेश काब्दे, हिन्दी अकादमी के उपसचिव डा. हरिसुमन बिष्ट, प्राचार्य डा. जी.एम.कलमसे तथा संस्था के अध्यक्ष डॉ. हरमहेन्दर सिंह बेदी ने दीप प्रज्वलित कर सम्मेलन का शुभारम्भ किया। स्थानीय संयोजिका सायन्स कालेज हिन्दी विभागाध्यक्ष डा. अरुणा राजेन्द्र शुक्ल ने गुरु गोविंद सिंह के साथ निजाम के अत्याचारी शासन के विरूद्ध संघर्ष करने वाले, क्षेत्र के मुक्तिदाता के रूप में स्थापित स्वामी रामानंद तीर्थ को अपने श्रद्धासुमन अर्पित करते हुए सभी अतिथियों का स्वागत किया। हजूर साहिब सचखंड के मुख्यग्रन्थी ने गुरुजी की अंतिम कर्मभूमि नांदेड़ के विषय में अनेक ऐतिहासिक तथ्यों की जानकारी दी वहीं स. हंसपाल एवं अन्य सभी वक्ताओं ने हिन्दी और गुरुगोविंद सिंह के साहित्य दर्शन को राष्ट्रीय एकता का पर्याय बताया। संयोजक सुरजीत सिंह जोबन ने देश के विभिन्न भागों से पधारे साहित्यकारों का स्वागत करते हुए कार्यक्रम की रूपरेखा प्रस्तुत की।
चायकाल के बाद जानेमाने कवि महेन्द्र शर्मा द्वारा संचालित कवि सम्मेलन का आगाज देवबंद के डा. महेन्द्रपाल काम्बोज के ओजस्वी स्वर में गुरुजी की यशोगान से हुआ। देर रात तक चले कवि सम्मेलन में सर्वश्री हर्षकुमार, नरेन्द्रसिंह होशियार पुरी, मनोहर देहलवी, किशोर श्रीवास्तव, विनोद बब्बर, डा. रामनिवास मानव, डा.कीर्तिवर्द्धन, अतुल त्रिपाठी, ओमप्रकाश हयारण दर्द, डा.अहिल्या मिश्र, डा. अरुणा शुक्ल, संतोष टेलवीकर, ज्योति मुंगल, संगमलाल भंवर, डा. हरिसुमन बिष्ट आदि ने राष्ट्रीय एकता के विभिन्न रंग बिखेरे।
द्वितीय दिवस के प्रथम सत्र में हजूर साहिब के मुख्य कथाकार ज्ञानी अमरसिंह की उपस्थिति में ‘गुरु गोविंदसिंह और उनका साहित्य साहित्य’ विषय पर परिचर्चा के दौरान अमृतसर के नानकदेव विश्वविद्यालय के विभागाध्यक्ष रहे डॉ. हरमहेन्दर सिंह बेदी ने गुरुजी रचित ‘विचित्र नाटक’ को प्रथम आत्मकथा बताया। डा. बेदी के अनुसार गुरुजी ने अपने जन्म स्थान पटना से आनंदपुर और फिर दक्षिण भारत तक के सम्पूर्ण क्षेत्र को अपना कर्मक्षेत्र बनाया। उन्होंने भारत की सांस्कृतिक विरासत की रक्षा के लिए तलवार उठाई वहीं साहित्यिक समृद्धि के लिए कलम का सहारा भी लिया। अपने अल्प जीवन में ही महान कार्य करने वाले गुरुजी जुझारू योद्धा ही नहीं अनेक भाषाओं के विद्वान भी थे। अन्य वक्ताओं में अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी शिक्षण केन्द्र शिमला की अध्यक्षा प्रो.जोगेश कौर, इन्दौर के डॉ. प्रताप सिंह सोढ़ी, हैदराबाद की अहिल्या मिश्र, नांदेड़ की एम.ए. की छात्रा श्रीमती पूनम शुक्ल तथा डा. परमेन्दर कौर भी शामिल थे। इसी सत्र में स. सुरजीत सिंह जोबन के अभिनंदन ग्रन्थ ‘खुश्बु बन कर जिऊंगा’ की प्रथम प्रति संपादक डा. रामनिवास मानव ने मंच पर विराजमान अतिथियों को भेंट कर लोकार्पण करने का आग्रह किया। तत्पश्चात डा. अरुणा राजेन्द्र शुक्ल के शोधग्रन्थ ‘नरेश मेहता के उपन्यासों में व्यक्त अवदान’ का लोकार्पण किया गया। इस सत्र का संचालन राष्ट्र-किंकर के संपादक श्री विनोद बब्बर ने किया।
भोजनोपरान्त द्वितीय सत्र में ‘अहिन्दीभाषी प्रदेशों का हिन्दी लेखन’ विषय पर परिचर्चा में मुख्य वक्ता विनोद बब्बर ने हिन्दुस्तान की आजादी के 65 वर्ष बाद भी यहाँ अहिन्दीभाषी शब्द के प्रयोग को अपमानजनक और दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए इसके लिए सरकारों की ढुलमुल नीति को जिम्मेवार ठहराया। उन्होंने मातृभाषा और राष्ट्रभाषा को दोनों आंखें बताते हुए इनमें संतुलन की आवश्यकता बताई लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि इन दोनों आँखों पर पट्टी बांधने तथा तीसरी आँख (अंग्रेजी) को प्रभावी बनाने के प्रयास हो रहे हैं जबकि तीसरा नेत्र विनाश का सूचक है। इस सत्र में डा.हरि सिंह पाल, डा.शहाबुद्दीन शेख, डा.रेखा मोरे, डा.ज्योति टेलवेकर ने भी अपने विचार प्रस्तुत किये। चायपान के बाद के सत्र में कवि सम्मेलन में विभिन्न राज्यों से आये कवियों ने अपनी श्रेष्ठ रचनाओं से वातावरण को हिन्दी कवितामय बनाया।
तीसरे दिन के प्रथम सत्र में क्षेत्र के लोकप्रिय विधायक श्री ओमप्रकाश पोकार्णा ने नांदेड की पवित्र भूमि पर सभी का स्वागत करते हुए सम्मेलन को राष्ट्रीय एकता का महाकुम्भ घोषित किया। विधायक महोदय ने हिन्दी के प्रति समर्पण के लिए स. सुरजीत सिंह जोबन तथा विनोद बब्बर को सम्मानित करते हुए उनके साहित्यिक अवदान की प्रशंसा की। इसी सत्र में ‘अंतर्राज्यीय भाषायी संवाद’ विषय पर हिन्दी अकादमी के उपसचिव डा. हरिसुमन बिष्ट ने मुख्य वक्ता के रूप में आदिकाल से आधुनिक काल तक के इतिहास और स्वतंत्रता संग्राम व बाद में राष्ट्रभाषा बनने तक हिन्दी की राष्ट्रीय पहचान को रेखांकित करते हुए आज के वैश्वीकरण के दौर में हिन्दी को सम्पूर्ण राष्ट्र की आवश्यकता बताया। डा. बिष्ट के अनुसार राष्ट्रभाषा, सम्पर्क भाषा, आम बोलचाल की भाषा हिन्दी ही है इसीलिए यह हम सभी को एकसूत्रता में पिरोती है। डा. रामनिवास मानव की अध्यक्षता एवं डा. अरूणा के संचालन में डॉ. बेदी, आकाशवाणी दिल्ली के पुर्व राजभाषा निदेशक डा.कृष्ण नारायण पाण्डेय, डा. मान, डा. रमा येवले प्रमुख वक्ता थे।
अंतिम सत्र में स. हंसपाल, डा. बेदी नांदेड़ एजुकेशन सो. के उपाध्यक्ष श्र सदाशिवराव पाटिल, प्राचार्य डा. कलमसे ने विद्वानों को ‘भाषा रत्न’ सम्मान प्रदान कर उनके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित की।
नांदेड़ से दिल्ली लौटते हुए सचखंड एक्सप्रेस के वातानुकुलित डिब्बे में कविगोष्ठी तथा डा. हरिसुमन विष्ट के उपन्यास अछनी-बछनी के कुछ अंशों का वाचन तथा समीक्षा संवाद आयोजित किये गये। इस नवप्रयोग की संकल्पना डा. रामनिवास मानव ने प्रस्तुत की जिसमें 25 से अधिक साहित्यकारों ने भाग लिया। सम्मेलन के दौरान विभिन्न प्रतिभागियों सहित हम सब साथ साथ की ज्योति गजभिये को साहित्य सम्मान, विनोद बब्बर एवं किशोर श्रीवास्तव को भाषा रत्न सम्मान से सम्मानित किया गया।
चायकाल के बाद जानेमाने कवि महेन्द्र शर्मा द्वारा संचालित कवि सम्मेलन का आगाज देवबंद के डा. महेन्द्रपाल काम्बोज के ओजस्वी स्वर में गुरुजी की यशोगान से हुआ। देर रात तक चले कवि सम्मेलन में सर्वश्री हर्षकुमार, नरेन्द्रसिंह होशियार पुरी, मनोहर देहलवी, किशोर श्रीवास्तव, विनोद बब्बर, डा. रामनिवास मानव, डा.कीर्तिवर्द्धन, अतुल त्रिपाठी, ओमप्रकाश हयारण दर्द, डा.अहिल्या मिश्र, डा. अरुणा शुक्ल, संतोष टेलवीकर, ज्योति मुंगल, संगमलाल भंवर, डा. हरिसुमन बिष्ट आदि ने राष्ट्रीय एकता के विभिन्न रंग बिखेरे।
द्वितीय दिवस के प्रथम सत्र में हजूर साहिब के मुख्य कथाकार ज्ञानी अमरसिंह की उपस्थिति में ‘गुरु गोविंदसिंह और उनका साहित्य साहित्य’ विषय पर परिचर्चा के दौरान अमृतसर के नानकदेव विश्वविद्यालय के विभागाध्यक्ष रहे डॉ. हरमहेन्दर सिंह बेदी ने गुरुजी रचित ‘विचित्र नाटक’ को प्रथम आत्मकथा बताया। डा. बेदी के अनुसार गुरुजी ने अपने जन्म स्थान पटना से आनंदपुर और फिर दक्षिण भारत तक के सम्पूर्ण क्षेत्र को अपना कर्मक्षेत्र बनाया। उन्होंने भारत की सांस्कृतिक विरासत की रक्षा के लिए तलवार उठाई वहीं साहित्यिक समृद्धि के लिए कलम का सहारा भी लिया। अपने अल्प जीवन में ही महान कार्य करने वाले गुरुजी जुझारू योद्धा ही नहीं अनेक भाषाओं के विद्वान भी थे। अन्य वक्ताओं में अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी शिक्षण केन्द्र शिमला की अध्यक्षा प्रो.जोगेश कौर, इन्दौर के डॉ. प्रताप सिंह सोढ़ी, हैदराबाद की अहिल्या मिश्र, नांदेड़ की एम.ए. की छात्रा श्रीमती पूनम शुक्ल तथा डा. परमेन्दर कौर भी शामिल थे। इसी सत्र में स. सुरजीत सिंह जोबन के अभिनंदन ग्रन्थ ‘खुश्बु बन कर जिऊंगा’ की प्रथम प्रति संपादक डा. रामनिवास मानव ने मंच पर विराजमान अतिथियों को भेंट कर लोकार्पण करने का आग्रह किया। तत्पश्चात डा. अरुणा राजेन्द्र शुक्ल के शोधग्रन्थ ‘नरेश मेहता के उपन्यासों में व्यक्त अवदान’ का लोकार्पण किया गया। इस सत्र का संचालन राष्ट्र-किंकर के संपादक श्री विनोद बब्बर ने किया।
भोजनोपरान्त द्वितीय सत्र में ‘अहिन्दीभाषी प्रदेशों का हिन्दी लेखन’ विषय पर परिचर्चा में मुख्य वक्ता विनोद बब्बर ने हिन्दुस्तान की आजादी के 65 वर्ष बाद भी यहाँ अहिन्दीभाषी शब्द के प्रयोग को अपमानजनक और दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए इसके लिए सरकारों की ढुलमुल नीति को जिम्मेवार ठहराया। उन्होंने मातृभाषा और राष्ट्रभाषा को दोनों आंखें बताते हुए इनमें संतुलन की आवश्यकता बताई लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि इन दोनों आँखों पर पट्टी बांधने तथा तीसरी आँख (अंग्रेजी) को प्रभावी बनाने के प्रयास हो रहे हैं जबकि तीसरा नेत्र विनाश का सूचक है। इस सत्र में डा.हरि सिंह पाल, डा.शहाबुद्दीन शेख, डा.रेखा मोरे, डा.ज्योति टेलवेकर ने भी अपने विचार प्रस्तुत किये। चायपान के बाद के सत्र में कवि सम्मेलन में विभिन्न राज्यों से आये कवियों ने अपनी श्रेष्ठ रचनाओं से वातावरण को हिन्दी कवितामय बनाया।
तीसरे दिन के प्रथम सत्र में क्षेत्र के लोकप्रिय विधायक श्री ओमप्रकाश पोकार्णा ने नांदेड की पवित्र भूमि पर सभी का स्वागत करते हुए सम्मेलन को राष्ट्रीय एकता का महाकुम्भ घोषित किया। विधायक महोदय ने हिन्दी के प्रति समर्पण के लिए स. सुरजीत सिंह जोबन तथा विनोद बब्बर को सम्मानित करते हुए उनके साहित्यिक अवदान की प्रशंसा की। इसी सत्र में ‘अंतर्राज्यीय भाषायी संवाद’ विषय पर हिन्दी अकादमी के उपसचिव डा. हरिसुमन बिष्ट ने मुख्य वक्ता के रूप में आदिकाल से आधुनिक काल तक के इतिहास और स्वतंत्रता संग्राम व बाद में राष्ट्रभाषा बनने तक हिन्दी की राष्ट्रीय पहचान को रेखांकित करते हुए आज के वैश्वीकरण के दौर में हिन्दी को सम्पूर्ण राष्ट्र की आवश्यकता बताया। डा. बिष्ट के अनुसार राष्ट्रभाषा, सम्पर्क भाषा, आम बोलचाल की भाषा हिन्दी ही है इसीलिए यह हम सभी को एकसूत्रता में पिरोती है। डा. रामनिवास मानव की अध्यक्षता एवं डा. अरूणा के संचालन में डॉ. बेदी, आकाशवाणी दिल्ली के पुर्व राजभाषा निदेशक डा.कृष्ण नारायण पाण्डेय, डा. मान, डा. रमा येवले प्रमुख वक्ता थे।
अंतिम सत्र में स. हंसपाल, डा. बेदी नांदेड़ एजुकेशन सो. के उपाध्यक्ष श्र सदाशिवराव पाटिल, प्राचार्य डा. कलमसे ने विद्वानों को ‘भाषा रत्न’ सम्मान प्रदान कर उनके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित की।
नांदेड़ से दिल्ली लौटते हुए सचखंड एक्सप्रेस के वातानुकुलित डिब्बे में कविगोष्ठी तथा डा. हरिसुमन विष्ट के उपन्यास अछनी-बछनी के कुछ अंशों का वाचन तथा समीक्षा संवाद आयोजित किये गये। इस नवप्रयोग की संकल्पना डा. रामनिवास मानव ने प्रस्तुत की जिसमें 25 से अधिक साहित्यकारों ने भाग लिया। सम्मेलन के दौरान विभिन्न प्रतिभागियों सहित हम सब साथ साथ की ज्योति गजभिये को साहित्य सम्मान, विनोद बब्बर एवं किशोर श्रीवास्तव को भाषा रत्न सम्मान से सम्मानित किया गया।
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